मकर संक्रांति
भारत के
प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता
है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता
है। गुड़–तिल,
रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है।
'संक्रान्ति' का अर्थ
है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना, अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश
करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है।देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व
पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं
गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया
है। इस दिन कुछ अन्य चीज़ भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य
खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को "तिल संक्राति"
के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के गोल-गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना
जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी
प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में
जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को
गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं।
विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप
से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से इलाहाबाद मे हर
साल माघ मेले की शुरुआत होती है| 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना
जाता है और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही
दिया जाता था. मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग
काफ़ी बदल गए है| 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है|
महाराष्ट्र में
इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य
सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है. लोग
एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `तिल गुड़ ध्या आणि गोड़
गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़,
रोली और हल्दी बांटती हैं|
मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों
में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है।पंजाब में इसे 'लोहड़ी' कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई
के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों
ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते
हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहंदी रचाती हैं।
पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं, जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक
मेला, जिसे 'गंगासागर मेला'
कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है। बंगाल में इस
पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला
लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम
से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को
प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों
की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं|
कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है।
बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है।
नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी
इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।
गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी
पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर
पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।
केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक
तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज
पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।
तमिलनाडु में
इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार
दिन तक मनाया जाता है.पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल
अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा
कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की
पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में
खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते इसके बाद सूर्य देव को
नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं|
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते
हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती
हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प
कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रांति पर
भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.
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