मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

सबसे बड़ी किताब


         ज़िदगी सबसे बड़ी किताब है जो आदमी को उसके अनुभवो से सीखने की प्रेरणा देती है | कुदरत ,समाज ,अपने परिवार ,दोस्त आदि जहां से भी कुछ नया व अच्छा सीखने को मिले ,हम उसे ग्रहण करे व अपने जीवन में उतारे |
         किसी को छोटा या अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए क्योकि ज्ञान तो हमें एक छोटी सी मकड़ी  भी दे जाती है |इस कहानी से तो आप सभी भलीभांति परिचित है कि किस तरह एक राजा उस मकड़ी  से जो की बार बार दीवार से गिर जाती है लेकिन अंत में अपने जाले तक पहुँच जाती से शिक्षा लेकर कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए फिर से युद्ध लड़ता है और सफलता भी प्राप्त करता है | इसीलिए हमें जहां से भी जानकारी मिले उसे ले लेना चाहिए | कभी कभी ऐसा होता है कि अच्छी डिग्री मिलने के बाद भी हम अनपढ़ ही रह जाते है ,नाकामयाब हो जाते है | बिना पढ़े भी हम अच्छे ग्रेड पा सकते है बस जरुरी है तो कि हम सीखने के सही तरीके को सीखे |

        अंत: हमारी शिक्षा ऐसी हो जो हमें नौकर बनना नहीं बल्कि लोगों के दिलों में बसना सिखाएं | शिक्षा ऐसी हो जो हमें सिर्फ रोजी रोटी ही न बल्कि जीने का रास्ता दिखाए | सफलता का मतलब यह नहीं है की हमनें जिद्गी में कौन सा मुकाम पाया है बल्कि यह है कि हमनें उसे कितनी मुश्किलों का सामना करके वह मुकाम पाया है | हमनें अपने आप में कितना सुधार किया है |

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

मुफ्त में हमें कभी कुछ नहीं मिलता |

            मुफ्त में हमें कभी कुछ नहीं मिलता | हम जितनी मेहनत करते है ,उसी के अनुसार हमें फल मिलता है |इसलिए बिना कुछ किए पाने की उम्मीद को छोड़कर खुद को कार्य के लिए तैयार करे | जितने वाले अपनी मेहनत विस्वास के बल पर सफलता हासिल कर लेते है |

                                         जो लोग हार जाते है, पीछे रह जाते है वे अपनी हार की वजह दुसरो को ठहरा देते है | हर समय बहाने बनाकर अपनी कमियों को छुपाने की कोशिश करते है |


काश ! मुझे भी मौका मिला होता |
यह काम मेरे करने लायक नहीं है |
मेरे पास वक्त नहीं है |
मुझे किसी ने सहारा नहीं दिया |
मै ज्यादा लोगो को नहीं जानता |
मै कम पढ़ा – लिखा हूँ |

                      असफल लोगो के पास तो बहानो की सूची मिल जायेगी | लेकिन यदि आप सफल होना चाहते है तो बहानो से खुद को बचाइए | काम सिर्फ सोच –विचार कर नहीं पूरी तैयारी ,योजना और विस्वास के साथ करे ताकि हम खुद को बहानेबाजी से दूर रख सके और अपना लक्ष्य पा सके |  

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

अच्छा सोचोगे,तो अच्छा होगा


                 सफलता में एकमात्र बाधा आपका अपना विचार है |अच्छाई और बुराई मस्तिष्क के विचार और उदेश्य पर निर्भर करती है | कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं है,इन्सान की सोच उसे ऐसा बना देती है |अच्छा सोचोगे,तो अच्छा होगा | बुरा सोचोगो,तो बुरा होगा | आप वहीं बनेगे जो आप दिन भर सोंचते है | 




शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

कल का दिन सिर्फ आलसियों के लिए हे


                                  दोस्तों , हम सब सोंचते हे योजना बनाते हे की हम कामयाब होंगे | हम लक्ष्य भी बनातें हे की हम बड़े होंगे | दोस्तों सोंचते सभी हे ,योजना भी बनाते हे पर कामयाब कुछ लोग ही होते | पता हे दोस्तों क्यू ?
                 क्यू की हम सोंचते हे पर उस पर कर्म(work )नहीं करते | उधारण : हर कोई कहता हे की सुबह जल्दी उठना हे , रात को सोते समय भी यह सोचकर सोते हे की सुबह जल्दी उठाना हे परतु जब सुबह होती हे तो उठ नहीं पाते , आलार्म बंद करके फिर से सो जाते हे और अपने आप से कहते हे और पाच मिनिट सो लेता हु फिर उठ जाऊंगा और सो जाते हे |
                  दोस्तों कहना यही हे की योजनाये धुल हे ,लक्ष्य असभव हे ,इन सब की कोई कीमत नहीं जब तक उनपर कर्म न हो | आलस छोड़िये ,कल का दिन सिर्फ आलसियों के लिए हे और आप आलसी नहीं हे योजना बनाया हे तो कर्म कीजिए| कर्म भले ही खुशियां या कामयाबी न लाये पर कर्म करके नाकाम होना , बिना कर्म किये छटपटाने से कही बबेहतर हे |      

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

हमेशा अच्छा ही होता है |


                दोस्तों हमारे साथ हमेशा अच्छा ही होता है फर्क सिर्फ इस बात का है कि कुछ लोग इस बात पर विश्वास करते है एंव हिम्मत नहीं हारते और यहीं दृढ़ निश्चय एंव विश्वास उनको सफलता तक ले जाता है| वहीँ दूसरी ओर कुछ लोग ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करते एंव जल्द ही निराश हो जाते है और यही निराशा उनको सफल होने से रोकती है | शायद ही इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो मुसीबतों, कठिनाइयों, पराजय, मेहनत एंव गलतियों के बिना सफल हुआ हो| इसलिए हो सकता है कि आपकी मुसीबतें, कठिनाईयां, पराजय एंव गलतियाँ इस बात का सूचक है की आप जल्द ही सफल होने वाले है |

बुधवार, 18 नवंबर 2015

आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे कि आप कुछ करे |


आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे कि आप कुछ करे |


      

                   आज से करीब एक साल पहले की बात हें एक सोसाइटी में पानी कि बड़ी समस्या थी | सोसाइटी कि इस समस्या से पार पाने के सोसाइटी के सभी कमिटी मेबर मिलजुल कर काम कर रहे थे | सोसाइटी में एक दिन में करीब ६ से ८ पानी के टेंकर आया करते थे तभी भी पानी कि समस्या कम नहीं हो पा रही थी और सोसाइटी का खर्च बढता ही जा रहा था | इतना ही नहीं सोसाइटी में रहने वाले लोग कमिटी मेबर को खरी खोटी सुनाते जेसे – आप लोग कुछ करते ही नहीं , आप लोगो को सोसाइटी सभलना नही आता ,इस सोसाइटी में घर लेकर अपने पैर पर पत्थर मार लिया | कमिटी मेबर से कहा सुनी हो जाती वह भी सुना देते – भाई हमने भी आप कि तरह यहाँ घर लिया हे हमारे भी घर में पानी कि समस्या हे हम अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं रहे हे अगर आप को लगता हे कि हम कुछ नहीं कर रहे तो आइये आप यहाँ काम कर के देख लीजिये | इतनी कहा सुनी होने पर भी समस्या जहां थी वहीं रही | सभी कमिटी मेबर निराश हो गए थे पर वह हार नहीं मान रहे थे | वह यही मान कर चल रहे थे हम कुछ कर सकते हम करके दिखा सकते हे हम इस समस्या से पार पा सकते हे |             
           उन लोगो ने फिर से इस विषय पर सोचना शुरू किया | कहते हे ना कि हम जितना सोचते हे उतना ही विषय या तो सुलझ जाता हे या उलझ जाता हे | अब उनके सामने दो समस्या हो गई एक पानी कि और दूसरी पानी के खर्च  केसे कम किया जाये | यही सोच रहे थे कि एक ने कहा क्यू न हम अपने सोसाइटी का पाइप लाइन एक बार देख ले कि पाइप से पानी आ कितना रहा हे ? इतना कहना ही था कि दो लोग उठे और पानी के टंकी पर चढ़ गये और देखा तो पाया कि पानी कि धार पहले से बहुत कम आ रही हे अब वह पानी के मोटर देखने गए मोटर भी ठीक चल रहा था | एक ने कहा बोरवेल पंप का पानी सीधे ऊपर वाले टंकी में जाता हे अब नीचे जमीन में पानी कम होगा इस लिए पानी की धार कम हो गई हे ,लगता हे अब हमें दूसरी जगह बोर करवाना पडेगा | तब किसी ने कहा क्यू न हम बोरवेल से जो पानी सीधे ऊपर जा रहा हे उसे कही नीचे वाले टंकी में डाल कर देखे | सभी ने कहा चलो यह भी करके देख लेते हे | अब नीचे वाले टंकी में डाल कर देखा गया पानी कि धार अब बहुत अच्छी तरह गिर रही थी |सब खुश हो गए | अब नीचे वाले टंकी पानी जमा कर वह पानी ऊपर वाले टंकी में डालने लगे | पानी कि समस्या दूर हो गई |
                   दोस्तों यहाँ सभी मेबर एक थे और अपने लक्ष्य जानते थे कि किसी भी तरह पानी कि समस्या दूर करनी हे वह हाथ पर हाथ रखकर बेठे नहीं रहे और कुछ न कुछ करते रहे ,हार नहीं मानी |दिमाग में लक्ष्य साफ़ हो तो उसे पाने के रास्ते भी साफ़ नज़र आने लगते हैं और इंसान उसी दिशा में अपने कदम बढा देता है| इसीलिए आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे कि आप कुछ करे और अपना लक्ष्य बनाये |

सोमवार, 16 नवंबर 2015

16 नवम्बर - 'राष्ट्रीय प्रेस दिवस'

 16 नवम्बर - 'राष्ट्रीय प्रेस दिवस'                                              

                         'राष्ट्रीय प्रेस दिवस' प्रत्येक वर्ष ‘16 नवम्बर' को मनाया जाता है।राष्ट्रीय प्रेस दिवस' पत्रकारों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से स्वयं को फिर से समर्पित करने का अवसर प्रदान करता है। पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अख़बारपत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।

                         यह दिन भारत में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की मौजूदगी का प्रतीक है। प्रथम प्रेस आयोग ने  भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप 4 जुलाई, 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई, जिसने 16 नवम्बर, 1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया।

                       सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। भारत में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780 ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।

                
                          पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था।
              
                       उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक श्री जुगुलकिशोर सुकुल थे।


 

सोमवार, 9 नवंबर 2015

महापर्व दीपावली पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाये

इस दीपावली श्री राम जी के कुपा आप सभी पर हो खुशियां आपके घर में वास करे|
दीवाली का यह पर्व आपके लिये मंगलदायी हो, आपका घर-बार खुशियों से भर जाये |
आप अपने क्षेत्र में उच्चतम उंचाइयो पर पंहुचे |
 इसी कामना के साथ आपको दीपावली की ढेरो शुभकामनाये" 


सोमवार, 7 सितंबर 2015

आज का दिन - 7 सितम्बर- नीरजा भनोट

आज का दिन - 7 सितम्बर 

नीरजा भनोट (7 सितंबर, 1963 - 5 सितंबर 1986) 

              
               नीरजा का जन्म ७ सितंबर १९६३ को पिता हरीश भनोट और माँ रमा भनोट की पुत्री के रूप में चंडीगढ़ में हुआ। उनके पिता  मुंबई में पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत थे और नीरजा की प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर चंडीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकेण्डरी स्कूल में हुई। इसके पश्चात् उनकी शिक्षा मुम्बई के स्कोटिश स्कूल और सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में हुई।  बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी। नीरजा ने अपनी इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी। 
           ५ सितंबर १९८६ के  मुम्बई से न्यूयॉर्क के लिये रवाना पैन ऍम-73 को कराची में चार आतंकवादियों ने अपहृत कर लिया और सारे यात्रियों को बंधक बना लिया। नीरजा उस विमान में सीनियर पर्सर के रूप में नियुक्त थीं और उन्हीं की तत्काल सूचना पर चालक दल के तीन सदस्य विमान के कॉकपिट से तुरंत सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गये। पीछे रह गयी सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के रूप में यात्रियों की जिम्मेवारी नीरजा के ऊपर थी और जब १७ घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तो नीरजा विमान का इमरजेंसी दरवाजा खोलने में कामयाब हुईं और यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैय्या कराया। वे चाहतीं तो दरवाजा खोलते ही खुद पहले कूदकर निकल सकती थीं किन्तु उन्होंने ऐसा न करके पहले यात्रियों को निकलने का प्रयास किया। इसी प्रयास में तीन बच्चों को निकालते हुए जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही नीरजा के बीच में आकार मुकाबला करते वक्त उस आतंकवादी की गोलियों की बौछार से नीरजा की मृत्यु हुई। नीरजा के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में मशहूरियत दिलाई। 
               नीरजा को भारत सरकार ने इस अदभुत वीरता और साहस के लिए मरणोंपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोट की उम्र २३ साल थी। इस प्रकार वे यह पदक प्राप्त करने वाली पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं।पाकिस्तान सरकार की ओर से उन्हें तमगा-ए-इन्सानियत से नवाज़ा गया।
                अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का नाम हीरोइन ऑफ हाईजैक के तौर पर मशहूर है। वर्ष २००४ में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष २००५ में उन्हें जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड दिया है।


शनिवार, 5 सितंबर 2015

5 सितंबर - कृष्ण जन्माष्टमी - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

  कृष्ण जन्माष्टमी - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन                  आज का दिन बहुत ही महत्व का दिन  आज भगवान और गुरु दोनों का जनम दिन  कृष्ण जन्माष्टमी और डॉसर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जनम दिवस  आज सच में सही अर्थ में भाग्य का दिन  आज शिक्षक दिवस जो हमें भगवान से मिलने की राह दिखाते हे और जिस भगवान का जन्म दिन हे वह भी एक गुरु ही हे  जिह्नो पुरे संसार को जी ने की राह दी अपने गीता के उपदेश से |


 कृष्ण जन्माष्टमी

                                   श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु के भय से बहिन देवकी और वसुदेव को कारागार में क़ैद किया हुआ था।
                कृष्ण जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारों तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेवदेवकी की बेड़ियाँ खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए। वहाँ पर नन्द की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालनपालन यशोदा व नन्द ने किया। बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला और उसके सभी कुप्रयासों को विफल कर दिया। अन्त में श्रीकृष्ण ने आतातायी कंस को ही मार दिया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाम ही जन्माष्टमी है। गोकुल में यह त्योहार 'गोकुलाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है।
        प्रत्येक भारतीय भागवत पुराण में लिखित 'श्रीकृष्णावतार की कथा' से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे - माखन व दही चुराना, चरवाहों व ग्वालिनियों से उनकी नोंकझोंक, तरह - तरह के खेल, इन्द्र के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली बाँसुरी का स्वर, कंस द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश - ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन


       स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। इन्होंने डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाया। इनका कार्यकाल 13 मई1962 से 13 मई, 1967 तक रहा। इनका नाम भारत के महान राष्ट्रपतियों की प्रथम पंक्ति में सम्मिलित है। इनके व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र इनका सदैव ॠणी रहेगा। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम में, 5 सितंबर 1888 को हुआ था। इनका जन्मदिवस 5 सितंबर आज भी पूरा राष्ट्र 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी, एक महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता होने के साथ ही साथ विज्ञानी हिन्दू विचारक थे। डॉक्टर राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे। वह एक आदर्श शिक्षक थे।
            हमारे देश में डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को प्रतिवर्ष 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी देश के राष्ट्रपति बने। इससे यह साबित होता है कि यदि व्यक्ति अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कार्य करे तो भी दूसरे क्षेत्र उसकी प्रतिभा से अप्रभावित नहीं रहते। डॉक्टर राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति थे। उन्हें एक बेहतरीन शिक्षक, दार्शनिक, देशभक्त और निष्पक्ष एवं कुशल राष्ट्रपति के रूप में यह देश सदैव याद रखेगा। राष्ट्रपति बनने के बाद कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए और उन्होंने निवेदन किया था कि वे उनका जन्मदिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा, 'मेरा जन्मदिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।' तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

आज का दिन - 4 सितम्बर -सियारामशरण गुप्त

सियारामशरण गुप्त

जन्म: 4 सितंबर 1895 - मृत्यु: 29 मार्च 1963
                  
               सियारामशरण गुप्त हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। उनकी रचनाओं में करुणा, सत्य-अहिंसा की मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है। हिन्दी साहित्य में उन्हें एक कवि के रुप में विशेष ख्याति प्राप्त हुई लेकिन एक मूर्धन्य कथाकार के रूप में भी उन्होंने कथा-साहित्य में भी अपना स्थान बनाया।

                सियारामशरण गुप्त की भाषा-शैली पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत् अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि कवि हैं।
            
     दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् 1962 ई. में "सरस्वती' हीरक जयन्ती में सम्मानित किये गये।  सन् 1941 ई. में "सुधाकर पदक' नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया।
   सियारामशरण गुप्त का असमय ही 29 मार्च 1963 ई. को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

आज का दिन - 3 सितम्बर -हल षष्ठी

आज का दिन - 3 सितम्बर -हल षष्ठी

विक्रम सम्वत् 2072, कृष्ण पक्षपंचमी/षष्ठी, भाद्रपद, गुरुवारभरणी

             हल षष्ठी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को कहा जाता है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित एक प्रमुख व्रत है। 'हल षष्ठी' के दिन मथुरा मण्डल और भारत के समस्त बलदेव मन्दिरों में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और ब्रज के राजा बलराम का जन्मोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

           धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान शेषनाग द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। बलराम जी का प्रधान शस्त्र 'हल' व 'मूसल' है। इसी कारण इन्हें 'हलधर' भी कहा गया है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम 'हल षष्ठी' पड़ा। इसे 'हरछठ' भी कहा जाता है। हल को कृषि प्रधान भारत का प्राण तत्व माना गया है और कृषि से ही मानव जाति का कल्याण है। इसलिए इस दिन बिना हल चले धरती का अन्न व शाक, भाजी खाने का विशेष महत्व है। इस दिन गाय का दूध व दही का सेवन वर्जित माना गया है। इस दिन व्रत करने का विधान भी है। हल षष्ठी व्रत पूजन के अंत में हल षष्ठी व्रत की छ: कथाओं को सुनकर आरती आदि से पूजन की प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

आज का दिन - 2 सितम्बर - विष्णु सखाराम खांडेकर

आज का दिन - 2 सितम्बर

विष्णु सखाराम खांडेकर


(जन्म- 19 जनवरी, 1898, सांगलीमहाराष्ट्र; मृत्यु- 2 सितंबर, 1976)
                        
           विष्णु सखाराम खांडेकर मराठी साहित्यकार हैं। उन्होंने उपन्यासों और कहानियों के अलावा नाटक, निबंध और आलोचनात्मक निंबंध भी लिखे। विष्णु सखाराम खांडेकर ने साहित्य की विभिन्न विधाओं का कुशल प्रयोग किया। उनकी लगन का ही फल था कि आधुनिक मराठी लघुकथा एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हुई और वैयक्तिक निबंध को प्रोत्साहन मिला। खांडेकर के ललित निबंध उनकी भाषा शैली के कारण काफी पसंद किए जाते हैं।

              गांधी जी की विचारधारा की उन पर अमिट छाप पड़ी, जब एक के बाद एक उनके कई मित्र और सहयोगी 'सत्याग्रह आंदोलन' में पकड़े गए। खांडेकर कला और जीवन के बीच घनिष्ठ संबंध मानते थे। उनकी दृष्टि में कला एक सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा लेखक पूरे मानव-समाज की सेवा कर सकता है। खांडेकर ने ययाति सहित 16 उपन्यास लिखे। इनमें हृदयाची हाक, कांचनमृग, उल्का, पहिले प्रेम, अमृतवेल, अश्रु, सोनेरी स्वप्ने भंगलेली शामिल हैं। उनकी कृतियों के आधार पर मराठी में छाया, ज्वाला, देवता, अमृत, धर्मपत्नी और परदेशी फिल्में बनीं। इनमें ज्वाला, अमृत और धर्मपत्नी नाम से हिन्दी में भी फिल्में बनाई गईं। उन्होंने मराठी फिल्म लग्न पहावे करून की पटकथा और संवाद भी लिखे थे।

              उन्हें मराठी के तमाम पुरस्कारों के अलावा साहित्य अकादमी और भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। सरकार ने उनके सम्मान में 1998 में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था।

               खांडेकर को प्रतिकूल स्वास्थ्य के कारण जीवन भर कष्ट भोगने पड़े । उनकी दृष्टि तक चली गई, मगर 78 वर्ष की आयु में भी वह प्रमुखमराठी पत्र-पत्रिकाओं को नियमित रचना-सहयोग दिया करते और साहित्य जगत की प्रत्येक नई गतिविधि से संपर्क बनाए रखते।
    मराठी भाषा के इस चर्चित साहित्यकार विष्णु सखाराम खांडेकर का निधन 2 सितंबर, 1976 को हुआ।