जीवन की महत्ता को समझिये और अपने इस अमूल्य जीवन को सकारात्मक विचारों का तोहफा दीजिये ... .यकीन जानिये सकारात्मक सोच का ये एक तोहफा आपकी पूरी लाइफ को शानदार बना देगा!
सोमवार, 23 नवंबर 2015
बुधवार, 18 नवंबर 2015
आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे कि आप कुछ करे |
आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे कि आप कुछ करे |
आज से करीब एक साल पहले की बात हें एक सोसाइटी में पानी कि बड़ी समस्या थी | सोसाइटी
कि इस समस्या से पार पाने के सोसाइटी के सभी कमिटी मेबर मिलजुल कर काम कर रहे थे |
सोसाइटी में एक दिन में करीब ६ से ८ पानी के टेंकर आया करते थे तभी भी पानी कि
समस्या कम नहीं हो पा रही थी और सोसाइटी का खर्च बढता ही जा रहा था | इतना ही नहीं
सोसाइटी में रहने वाले लोग कमिटी मेबर को खरी खोटी सुनाते जेसे – आप लोग कुछ करते
ही नहीं , आप लोगो को सोसाइटी सभलना नही आता ,इस सोसाइटी में घर लेकर अपने पैर पर
पत्थर मार लिया | कमिटी मेबर से कहा सुनी हो जाती वह भी सुना देते – भाई हमने भी
आप कि तरह यहाँ घर लिया हे हमारे भी घर में पानी कि समस्या हे हम अपनी जिम्मेदारी
से भाग नहीं रहे हे अगर आप को लगता हे कि हम कुछ नहीं कर रहे तो आइये आप यहाँ काम कर
के देख लीजिये | इतनी कहा सुनी होने पर भी समस्या जहां थी वहीं रही | सभी कमिटी
मेबर निराश हो गए थे पर वह हार नहीं मान रहे थे | वह यही मान कर चल रहे थे हम कुछ
कर सकते हम करके दिखा सकते हे हम इस समस्या से पार पा सकते हे |
उन लोगो ने फिर से इस विषय पर सोचना
शुरू किया | कहते हे ना कि हम जितना सोचते हे उतना ही विषय या तो सुलझ जाता हे या
उलझ जाता हे | अब उनके सामने दो समस्या हो गई एक पानी कि और दूसरी पानी के खर्च केसे कम किया जाये | यही सोच रहे थे कि एक ने
कहा क्यू न हम अपने सोसाइटी का पाइप लाइन एक बार देख ले कि पाइप से पानी आ कितना
रहा हे ? इतना कहना ही था कि दो लोग उठे और पानी के टंकी पर चढ़ गये और देखा तो
पाया कि पानी कि धार पहले से बहुत कम आ रही हे अब वह पानी के मोटर देखने गए मोटर
भी ठीक चल रहा था | एक ने कहा बोरवेल पंप का पानी सीधे ऊपर वाले टंकी में जाता हे
अब नीचे जमीन में पानी कम होगा इस लिए पानी की धार कम हो गई हे ,लगता हे अब हमें
दूसरी जगह बोर करवाना पडेगा | तब किसी ने कहा क्यू न हम बोरवेल से जो पानी सीधे
ऊपर जा रहा हे उसे कही नीचे वाले टंकी में डाल कर देखे | सभी ने कहा चलो यह भी
करके देख लेते हे | अब नीचे वाले टंकी में डाल कर देखा गया पानी कि धार अब बहुत
अच्छी तरह गिर रही थी |सब खुश हो गए | अब नीचे वाले टंकी पानी जमा कर वह पानी ऊपर
वाले टंकी में डालने लगे | पानी कि समस्या दूर हो गई |
दोस्तों यहाँ सभी
मेबर एक थे और अपने लक्ष्य जानते थे कि किसी भी तरह पानी कि समस्या दूर करनी हे वह
हाथ पर हाथ रखकर बेठे नहीं रहे और कुछ न कुछ करते रहे ,हार नहीं मानी |दिमाग में
लक्ष्य साफ़ हो तो उसे पाने के रास्ते भी साफ़ नज़र आने लगते हैं और इंसान उसी
दिशा में अपने कदम बढा देता है| इसीलिए आप जो भी करते हे सबसे महत्वपूर्ण तो यह हे
कि आप कुछ करे और अपना लक्ष्य बनाये |
मंगलवार, 17 नवंबर 2015
सोमवार, 16 नवंबर 2015
16 नवम्बर - 'राष्ट्रीय प्रेस दिवस'
16 नवम्बर - 'राष्ट्रीय प्रेस दिवस'
'राष्ट्रीय प्रेस दिवस' प्रत्येक वर्ष ‘16 नवम्बर' को मनाया जाता है। ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस' पत्रकारों को सशक्त
बनाने के उद्देश्य से स्वयं को फिर से समर्पित करने का अवसर प्रदान करता है।
पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक
प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अख़बार, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
यह दिन भारत में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की
मौजूदगी का प्रतीक है। प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा एंव पत्रकारिता में उच्च आदर्श कायम करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी।
परिणाम स्वरूप 4 जुलाई, 1966 को भारत में
प्रेस परिषद की स्थापना की गई, जिसने 16 नवम्बर,
1966 से अपना विधिवत
कार्य शुरू किया।
सर्वप्रथम भारत
में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तग़ालियों को दिया जाता है। भारत
में प्रथम समाचार पत्र निकालने का श्रेय 'जेम्स ऑगस्टस हिक्की' को मिला। उसने 1780
ई. में 'बंगाल गजट' का प्रकाशन किया, किन्तु इसमें कम्पनी
सरकार की आलोचना की गई थी, जिस कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया।
पहला भारतीय
अंग्रेज़ी समाचार पत्र 1816 ई. में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य
द्वारा 'बंगाल गजट' नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार पत्र था।
उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं
निकलता था। इसलिए "उदंत मार्तड" का प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक श्री
जुगुलकिशोर सुकुल थे।
गुरुवार, 12 नवंबर 2015
सोमवार, 9 नवंबर 2015
शुक्रवार, 6 नवंबर 2015
गुरुवार, 5 नवंबर 2015
बुधवार, 4 नवंबर 2015
मंगलवार, 3 नवंबर 2015
सोमवार, 2 नवंबर 2015
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